Jhelum नदी का इतिहास: और भारत, पाक से रिश्ता
परिचय
Jhelum नदी का इतिहास: और भारत, पाक से रिश्ता
झेलम नदी उत्तर भारत और पाकिस्तान की एक प्रमुख नदी है। यह सिंधु नदी की एक महत्वपूर्ण सहायक नदी है और ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक दृष्टि से इसका अत्यधिक महत्व रहा है। प्राचीन काल में इसे वितस्ता (Vitasta) नाम से जाना जाता था, जो ऋग्वेद और महाभारत जैसे ग्रंथों में उल्लिखित है। यह भारत के जम्मू और कश्मीर प्रदेश, पाक अधिकृत कश्मीर और पाकिस्तान के ख़ैबर पख़्तूनख़्वा व पंजाब प्रान्तों में बहती है। झेलम सिन्धु नदी की एक प्रमुख उपनदी है, और उन पाँच नदियों में से एक है जिनके कारण “पंजाब” (पाँच-आब या पाँच पानी) का नाम पड़ा है। कश्मीरी नाम व्यथ न’द (Vyath Nad) है और यह नदी भारत पाकिस्तान को जोड़ती है।
सामग्री
इतिहास
संस्कृति
प्राचीन सभ्यता
भुगोल
कालक्रम
झेलम नदी का इतिहास
झेलम नदी का इतिहास हजारों वर्षों पुराना है। वैदिक काल में इसे सात प्रमुख नदियों में से एक माना गया। प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में झेलम को “वितस्ता” कहा गया है, जिसका उल्लेख ऋग्वेद, महाभारत और पुराणों में भी मिलता है।
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महाभारत काल: वितस्ता नदी के तट पर कई जनपदों और राज्यों का विकास हुआ। यह क्षेत्र कश्मीर घाटी का प्रमुख जलस्रोत रहा।
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ग्रीक इतिहास: सिकंदर महान (Alexander the Great) ने 326 ईसा पूर्व में भारत पर आक्रमण किया था। झेलम नदी के किनारे ही सिकंदर और भारतीय राजा पुरू (राजा पोरस) के बीच प्रसिद्ध युद्ध हुआ, जिसे इतिहास में हाइडेस्पीज का युद्ध (Battle of Hydaspes) कहा जाता है। उस समय झेलम को यूनानियों ने हाइडेस्पीज (Hydaspes) कहा था।
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मौर्य और गुप्त काल: झेलम घाटी में बौद्ध संस्कृति का प्रभाव बढ़ा। अशोक सम्राट ने यहां कई स्तूपों और बौद्ध विहारों का निर्माण कराया।
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इस्लामिक काल: मध्यकाल में इस क्षेत्र पर मुस्लिम शासकों का प्रभाव बढ़ा और झेलम नदी कश्मीर और पंजाब के सांस्कृतिक मिलन का केंद्र बन गई।
झेलम नदी की संस्कृति
झेलम नदी सिर्फ एक भौगोलिक धरोहर नहीं है, बल्कि यह संस्कृति और जीवन का आधार भी रही है।
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धार्मिक महत्व: झेलम को हिन्दू धर्म में पवित्र माना जाता है। वितस्ता (झेलम) का स्नान मोक्षकारी माना जाता है। कश्मीर के पंडित आज भी वितस्ता स्नान का विशेष आयोजन करते हैं।
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बौद्ध संस्कृति: बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में झेलम नदी क्षेत्र ने बड़ी भूमिका निभाई। बौद्ध भिक्षु यहीं से यात्रा कर उत्तर भारत और आगे के क्षेत्रों में बौद्ध धर्म फैलाने गए।
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इस्लामिक प्रभाव: सूफी संतों ने भी झेलम घाटी में आध्यात्मिकता और शांति का संदेश फैलाया।
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स्थानीय त्योहार और परंपराएँ: झेलम के किनारे कई मेले, तीर्थ यात्राएँ और धार्मिक अनुष्ठान होते हैं। खासकर कश्मीरी संस्कृति में झेलम का गहरा स्थान है।
झेलम नदी और प्राचीन सभ्यता
झेलम नदी प्राचीन सभ्यताओं का पालना रही है।
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सिंधु घाटी सभ्यता: झेलम नदी क्षेत्र सिंधु घाटी सभ्यता के विस्तार में शामिल था। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो जैसे स्थानों के समानांतर, झेलम घाटी में भी मानव बस्तियों के प्रमाण मिले हैं।
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कश्मीर सभ्यता: कश्मीर घाटी का विकास झेलम नदी के जल पर निर्भर था। प्राचीन नगरी श्रीनगर (Shri-Nagar) का प्रारंभिक विकास भी झेलम के किनारे हुआ।
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कला और वास्तुकला: झेलम किनारे प्राचीन मन्दिरों, बौद्ध स्तूपों और इस्लामिक स्थापत्य का अद्भुत समन्वय मिलता है। लकड़ी के पुल (जिन्हें कश्मीर में “कदाल” कहते हैं) भी झेलम पर बनाए गए, जो आज भी सांस्कृतिक विरासत माने जाते हैं।
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झेलम नदी का भूगोल
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उद्गम स्थल: झेलम नदी जम्मू और कश्मीर के अनंतनाग जिले में स्थित वेरिनाग (Verinag) नामक स्थान से निकलती है।
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प्रवाह मार्ग: यह श्रीनगर शहर को पार करते हुए वुलर झील में मिलती है और फिर पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के झंग ज़िले में त्रिम्मू नामक स्थान पर चनाब नदी में जा कर संगम करता है, इसके बाद चनाब नदी आगे चलकर सिन्धु नदी में विलय होता है। इस
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मुख्य सहायक नदियाँ: किशनगंगा (नीलम नदी), पुंछ नदी, और कुनहार नदी।
- झेलम नदी की लंबाई 725 किमी है।
झेलम नदी भारत और पाकिस्तान दोनों के लिए ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक दृष्टि से एक जीवनरेखा रही है। यह नदी सिर्फ जलधारा नहीं, बल्कि सभ्यता, संस्कृति, युद्धों और शांति का गवाह रही है। आज भी झेलम घाटी की संस्कृति, गीत-संगीत और जीवन में इस नदी का अमिट प्रभाव दिखाई देता है।
औषधीय पौधे
झेलम नदी का तट औषधीय पौधों का खजाना है. नदी का पानी औषधीय गुणों से भरपूर है और इसके किनारे विभिन्न प्रकार की जड़ी-बूटियां उगती हैं, जिनका इस्तेमाल दवा उद्योग में किया जाता है. जम्मू-कश्मीर में पर्यटन के लिहाज से भी काफी लोकप्रिय है. भारत में बिजली उत्पादन में भी इस नदी का योगदान है. किशनगंगा हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर प्लांट और उरी बांध से जम्मू-कश्मीर और पड़ोसी राज्यों को बिजली मिलती है.
झेलम नदी का कालक्रम (Timeline)
वर्ष/कालखंड | घटना/विवरण |
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वैदिक काल (8000 ईसा पूर्व) | झेलम का उल्लेख “वितस्ता” के नाम से ऋग्वेद में हुआ; सप्तसिंधु क्षेत्र का हिस्सा। |
महाभारत काल (3000 ईसा पूर्व) | महाभारत ग्रंथ में वितस्ता नदी का उल्लेख; कश्मीर क्षेत्र का प्रमुख जलस्रोत। |
6वीं सदी ईसा पूर्व | बौद्ध धर्म का उदय; झेलम क्षेत्र में बौद्ध संस्कृति का प्रसार। |
326 ईसा पूर्व | सिकंदर और राजा पोरस के बीच झेलम के किनारे “हाइडेस्पीज का युद्ध” (Battle of Hydaspes)। |
मौर्य काल (322-185 ईसा पूर्व) | सम्राट अशोक द्वारा कश्मीर और झेलम क्षेत्र में बौद्ध स्तूपों का निर्माण। |
4वीं-5वीं सदी ईस्वी | गुप्त काल के दौरान झेलम क्षेत्र में कला, संस्कृति और व्यापार का विकास। |
7वीं सदी ईस्वी | चीनी यात्री ह्वेनसांग ने झेलम और कश्मीर क्षेत्र की यात्राएं कीं और विवरण दर्ज किया। |
8वीं-12वीं सदी ईस्वी | झेलम घाटी में हिंदू शाही राजवंशों और स्थानीय राजाओं का शासन। |
14वीं सदी ईस्वी | इस्लाम का प्रसार; सूफी संतों का आगमन, झेलम घाटी में इस्लामिक संस्कृति का प्रभाव। |
16वीं-17वीं सदी | मुगल सम्राटों (जैसे अकबर और जहांगीर) द्वारा कश्मीर और झेलम क्षेत्र में सुंदर बाग-बगिचों और वास्तुशिल्प का विकास। |
1846 | अमृतसर संधि के बाद झेलम क्षेत्र डोगरा शासन के तहत आ गया (जम्मू-कश्मीर रियासत)। |
1947 | भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद झेलम नदी भारत और पाकिस्तान दोनों देशों के हिस्से में बंटी। |
1960 | सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) के तहत झेलम नदी पाकिस्तान के नियंत्रण में दी गई, लेकिन भारत सीमित उपयोग कर सकता है। |
वर्तमान | झेलम नदी का पानी कृषि, पीने और ऊर्जा उत्पादन (हाइड्रोपावर) में उपयोग हो रहा है; यह क्षेत्र सांस्कृतिक और पर्यावरणीय रूप से संवेदनशील बना हुआ है। |
अन्य नदियां
वेनागरी नदी
चनाब नदी
सिन्धु नदी